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माता-पिता का सदा आदर करो

क्या साम्प्रदायिक
क्या साम्प्रदायिक
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काफी अरसे के बाद अपने शहर गया ! बाज़ार में घुमते हुए सहसा मेरी नज़रें सब्जी का ठेला लगाये एक बूढे पर जा टिकीं, बहुत कोशिश के बावजूद भी मैं उसको पहचान नहीं पा रहा था ! लेकिन न जाने बार बार ऐसा क्यों लग रहा था की मैं उसे बड़ी अच्छी तरह से जनता हूँ ! मेरी उत्सुकता उस बूढ़ेसे भी छुपी न रही , उसके चेहरे पर आई अचानक मुस्कान से मैं समझ गया था कि उसने मुझे पहचान लिया था !

काफी देर की कशमकश के बाद जब मैंने उसे पहचाना तो मेरे पाँव के नीचे से मानो ज़मीन खिसक गई ! पहले तो इसकी एक बहुत बड़ी आटा मिल हुआ करती थी नौकर चाकर आगे पीछे घूमा करते थे ! धर्म कर्म, दान पुण्य में सब से अग्रणी इस दानवीर पुरुष को मैं ताऊजी कह कर बुलाया करता था !

वही आटा मिल का मालिक और आज सब्जी का ठेला लगाने पर मजबूर? मुझ से रहा नहीं गया और मैं उसके पास जा पहुँचा और बहुत मुश्किल से रुंधे गले से पूछा :

“ताऊ जी, ये सब कैसे हो गया ?”

भरी ऑंखें लिए मेरे कंधे पर हाथ रख उसने उत्तर दिया:

“बच्चे बड़े हो गए हैं बेटा और उनकी शादी भी हो गई ………………”
ये सब सुनकर सन्न हो जाना स्वभाविक है।
पहले माता-पिता का सदा आदर करो–यहीं से शुरू होती थी शिक्षा।
परन्तु सही शिक्षा ना मिलने से माता-पिता और बुजुर्गों का
निरादर होना आम बात हो गई है लगभग हर घर में।
श्रवण कुमार की भावना विलुप्त होने लगी है क्योंकि श्रवण कुमार
की कहानी ना सुनाई जा रही है और ना पड़ाई जा रही है।
आवश्यकता है अपने माता-पिता के लिए श्रवण कुमार
बनने की तभी घर परिवार समाज और देश बच सकेगा।
ये सही है:-
माता-पिता के चरण छुए जो,
चार धाम तीर्थ फल पावे।
जो आशीष वे दिल से देवें,
भगवन से भी टाली न जावे।।
आर एम मित्तल
मोहाली

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