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कहते हैं बदलाव प्रकृति का नियम है और बदलाव अच्छे के लिए होता है | पिछले अर्ध शतक में हुए बदलावों का द्रष्टा रहा हूँ | अब ये बदलाव कितना सच्चा कितना भद्दा इसका आंकलन तो आप ही कर सकते हैं | गर्मी के शुरू होते ही गर्मी की छुटियों का सिलसिला शुरू हो जाता था | बहन भाइयों के बच्चे ऐसे आकर गले में लटक जाते थे जैसे बेल पर अंगूर | नानी के चारों और ऐसे मंडराते थे जैसे तितलियों में फूल पर पहुंचने की होड़ लगी हो | नानी दादी के पास सोने की जिद | बच्चों का चूमना चाटना लिपटने का सिलसिला अविरल चलता रहता था | बदले में बच्चों को मिलती थी एक कहानी और बच्चे आगे सुनाओ कहते – कहते सो जाते | छुटियाँ खत्म होने को होती तो मन मायूस रहने लगता | बहने कई दिन पहले जल्दी फिर आने का दिलासा देने लगती | भाई भतीजों का विदाई की रात को चादर ओड़ कर रोना और दिन में दरवाजों के पीछे रोना खत्म ही नही होता था | लगता था ममता का सेतु टूट गया हो | बदलाव के नाम पर बच्चे अब सिंगापूर, नानी मामे दादी चाचे से कोसों दूर विदेश जाने लगे हैं | जो बहन कहा करती थी छुटियों में तो हम जरुर आयेंगे चाहे बुलाओ या न बुलाओ बरसों खबर भी नही लेती | जिन पर नाज होता था आज वो अनजान हो गये | बस लिखते–लिखते याद आ गया वक्त फिल्म का यह गाना कल चमन था आज वीरान हो गया देखते-देखते ये क्या हो गया |
बच्चों का गलियों में खेलना शोर मचाना, शाम को छतों पर पतंगो की बोकाटा एक मेले की तरह लगता था लेकिन अब सब सुनसान जैसे उस चहकते बचपन को सांप डस गया हो | पहले सौ रूपये जेब में हों तो आश्वस्त रहते थे की खत्म नही होंगे बच्चों की मांग पूरा करने के लिए और अब हजारों के नोट रखने के बाद क्रडिट कार्ड रखना पड़ता है | क्रमशः ——
आर एम मित्तल
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